राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व

 

Rajasthan Famous Personality

( राजस्थान के प्रमुख व्यक्तित्व )

राजस्थान के प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी ( Famous Freedom Fighter of Rajasthan )

Hiralal Shastri ( हीरालाल शास्त्री )

जन्म 24 नवंबर 1899 जन्म स्थल जोबनेर जयपुर वनस्थली विद्यापीठ नमक महिला शिक्षण संस्थान के संस्थापक शास्त्री जी भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के प्रधानमंत्री तथा 30 मार्च 1949 को वृद्ध राजस्थान के प्रथम मुख्यमंत्री बने टोंक जिले के निवाई तहसील के वनस्थली ग्राम में स्थित जीवन कुटीर नामक संस्था के संस्थापक शास्त्री जी 1958 से 62 तक सवाई माधोपुर के लोकसभा सदस्य रहे तथा 28 दिसंबर 1974 को स्वर्ग सिधार गए प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र नामक पुस्तक का लेखक किया एवं प्रशिक्षण नमो नमो नमः गीत लिखा जो बहुत लोकप्रिय हुआ

Motilal Tejavat ( मोतीलाल तेजावत )

16 मई 1887 जन्म स्थल कोलिया उदयपुर आदिवासियों का मसीहा बाबू जी का जाने वाली स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल तेजावत ने  1920 में चित्तौड़गढ़ स्थित मात्र कुंडिया नामक स्थान पर एक ही आंदोलन प्राप्त किया जिसके माध्यम से सर्वप्रथम पोलो में राजनीतिक जागृति पैदा हुई उदयपुर चित्तौड़गढ़ से लोकसभा सदस्य राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष रहे तेजावत दिसंबर 1963 को स्वर्ग सिधार गए

Bhogilal Pandya ( भोगीलाल पांडया )

“वागड़ की गांधी” नाम से लोकप्रिय भोगीलाल पंड्या का जन्म आदिवासी जिला डूंगरपुर के सीमलवाडा ग्राम में 13 नवंबर, सन 1904 को हुआ। इन्होंने आदिवासी समाज में आत्म स्वाभिमान, शिक्षा का प्रकाश, कुप्रथाओं से छुटकारा और जागरूकता का दीप प्रज्वलित किया। 15 मार्च, 1938 को डूंगरपुर में “वनवासी सेवा संघ” की स्थापना की। 1 अगस्त, 1944 को डूंगरपुर में प्रजामंडल की स्थापना की। 1975 में भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से अलंकृत

इसका उद्देश्य डूंगरपुर रियासत में महारावल की छत्रछाया में उत्तरदाई शासन की स्थापना करना था। 31 मार्च, 1981 को इनकी मृत्यु हुई।

Gokul Bhai Bhatt ( गोकुल भाई भट्ट )

जन्म 25 जनवरी 1818 उपनाम राजस्थान के गांधी जन्म स्थल  हाथल सिरोही जमनालाल बजाज पुरस्कार 1982 से सम्मानित भट्ट जी मैं 1972 से 1981 तक मध्य निषेध के लिए अथक प्रयास किया सन 1948 ईस्वी में राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष भट्ट जी ने सिरोही राज्य में प्रजामंडल की स्थापना की एवं राजपूताना प्रांतीय देशी राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया आबू का राजस्थान में विलय उनके प्रयासों से हुआ

Mohanlal Sukhadia ( मोहनलाल सुखाडिया )

जन्म 31 जुलाई 1916 जन्म स्थल नाथद्वारा राजसमंद राजस्थानी राजस्थान के निर्माता मोहनलाल सुखाडिया 13 नवंबर 1956 को राजस्थान के मुख्यमंत्री बने तथा 17 वर्ष तक राजस्थान में शासन किया राजस्थान में सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का गौरव प्राप्त है उन्होंने इंदुबाला के साथ अंतरजातीय विवाह करके मेवाड़ में रहते सामाजिक जीवन में क्रांति लाई राजस्थान में जागीरदारी प्रथा के उन्मूलन में श्री सुखाड़िया की भूमिका सर्वप्रथम राजस्व मंत्री के रूप में तथा तत्पश्चात मुख्यमंत्री के रूप में महत्वपूर्ण रही राजस्थान में मुख्यमंत्री तू के पश्चात वे दक्षिण भारत के 3 राज्य कर्म से कर्नाटक आंध्र प्रदेश तमिलनाडु के राज्यपाल रहे

Jamuna Lal Bajaj ( जमुना लाल बजाज )

जन्म 4 नवंबर 1889 जन्म स्थल काशी का बास सीकर गांधीजी के पांचों पुत्र के जाने वाले जमनालाल बजाज ने गांधीजी के नवजीवन साप्ताहिक हिंदी संस्थान का समूचा वित्तीय भार उठाया अंग्रेजों द्वारा दी गई रायबहादुर नामक उपाधि को वापस लौटा कर संपूर्ण जीवन स्वाधीनता संग्राम के समर्पित कर दिया  1938 मैं जयपुर प्रजामंडल के अध्यक्ष बने जमुना लाल बजाज ने राजस्थान सेवा संघ को पुनर्जीवित कर के महान कार्य किया

Haridov Joshi  ( हरिदेव जोशी )

जन्म 17 दिसंबर 1921 जन्म स्थल खंडू ग्राम बांसवाड़ा बाबा लक्ष्मण दास की प्रेरणा से इन्होंने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी ने दैनिक नव जीवन को कांग्रेस संदेश नमो पत्रिकाओं का संपादन किया डूंगरपुर के आदिवासियों को राष्ट्रीय आंदोलन के लिए जागृत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया

Ram Narayan Chaudhary  ( रामनारायण चौधरी )

जन्म 1800 ईस्वी जन्म स्थल नीमकाथाना सीकर 1934 में गांधी जी की दक्षिणी भारतीय हरिजन यात्रा के दौरान हिंदी सचिव के रूप में चौधरी ने राजस्थान में जन चेतना के लिए नया राजस्थान नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया तरुण राजस्थान के संपादक चौधरी ने 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना राजस्थान शाखा का कार्यभार संभाला

Damodar Das Rathi ( दामोदर दास राठी )

जन्म 8 फरवरी 1884 जन्म स्थल पोकरण जैसलमेर दामोदर दास राठी एक महान व्यक्ति थे जिन्होंने ब्यावर में सनातन धर्म स्कूल है उन नवभारत विद्यालय की स्थापना की राठी साहब क्रांतिकारियों को अन्य गतिविधियों के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करते

Manikya Lal Verma ( माणिक्य लाल वर्मा )

जन्म 4 दिसंबर 1897 जन्म स्थल बिजोलिया भीलवाड़ा मेवाड़ का वर्तमान शासन नामक पुस्तक के प्रकाशन माणिक्यलाल वर्मा ने अक्टूबर 1938 में विजयदशमी के दिन प्रजामंडल पर लगी रोक हटाने के लिए हुए सत्याग्रह आंदोलन का अजमेर में संचालन किया सन 1941 में मेवाड़ प्रजामंडल के पहले अधिवेशन की अध्यक्षता की वर्मा जी का लिखा हुआ पंखिड़ा ना गीत बहुत लोकप्रिय हुआ 1948 में संयुक्त राजस्थान के प्रधानमंत्री व 1963 में राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष रहे

Jai Narayan Vyas ( जय नारायण व्यास )

जन्म 18 फरवरी 1899 जन्म स्थल जोधपुर लोक नायक जय नारायण व्यास 1927 में तरुण राजस्थान के प्रधान संपादक 1936 में अखंड भारत के प्रकाशक रहे के साथ साथ आगे बढ़ना मक राजस्थान पत्रिका प्रकाशन का कार्य किया व्यास जी वर्ष 1951 से 1956 की अवधि में दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे राजस्थान में प्रथम व्यक्ति चैनल व्यस्त हैं जिन्होंने सामंतशाही के विरुद्ध संघर्ष किया एवं जागीरदारी प्रथा समाप्त करने की आवाज उठाई भारत सरकार के सदस्य की हत्या करने की योजना बनाई लेकिन समय पर नहीं पहुंचने के कारण हत्या ना हो सकी

Balwant Singh Mehta ( बलवंत सिंह मेहता ) 

जन्म 8 फरवरी 1900 जन्म स्थल उदयपुर मेवाड़ के पुराने जनसेवक और सन 1938 को प्रजामंडल के पहले अध्यक्ष बलवंत सिंह मेहता ने 1943 ईस्वी में उदयपुर में वनवासी छात्रावास की स्थापना की मूल संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले पहले राजस्थानी

Haribhau Upadhyay ( हरिभाऊ उपाध्याय )

जन्म 9 मार्च 1893 जन्म स्थल भौरासा ग्वालियर MP हरिभाऊ उपाध्याय ने वाराणसी में रघुवर नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया 1916 से 1919 तक महावीर प्रसाद द्विवेदी के साथ सरस्वती नामक पत्रिका का संपादन किया नमक सत्याग्रह के दौरान उपाध्याय को राजस्थान का प्रथम डॉक्टर बनाया और उस के नेतृत्व में अजमेर में नमक कानून का उल्लंघन किया हरिभाऊ उपाध्याय ने रास्ता साहित्य मंडल हटूंडी गांधी आश्रम महिला शिक्षा सदन की स्थापना की 1952 में अजमेर राज्य में प्रथम मुख्यमंत्री बने हैं 1916 में पदम श्री से सम्मानित हुए

Rao Gopal Singh Khva  ( राव गोपाल सिंह खरवा )

राजपूताने में वीर भारत सभा के नाम से कुछ सैनिक संगठन बना गया था जिस के संस्थापक एवं संचालन केसरी सिंह बारहठ के साथ खारवा के राव गोपाल सिंह का महत्वपूर्ण योगदान था क्रांतिकारियों को धन एवं शस्त्र दिलाने का कार्य राव गोपाल सिंह ने किया 21 फरवरी 1915 को तय की गई सशस्त्र क्रांति में राजपूताना राव गोपाल सिंह खरवा एवं सेठ दामोदर दास राठी को ब्यावर और भूप सिंह को अजमेर नसीराबाद का पर कब्जा करने का कार्य सौंपा

Govind Giri ( गोविंद गिरी )

राजस्थान के बागड़ प्रदेश की गरीब लोगों के सर्वप्रथम उदयपुर डूंगरपुर के बांसुरिया ग्राम के निवासी जिन्होंने संप सभा की स्थापना करके आदिवासी भीलों के समाज में धर्म सुधार आंदोलन चलाया 1908 उनकी कार्यशैली मानगढ़ पहाड़ी पर एक वार्षिक सभा के दौरान अंग्रेजी सेना ने फायरिंग कर दी भीषण नरसंघार किया

Chagan Raj Chawpatani  ( छगन राज चौपासनी वाला ) 

26 जनवरी 1932 में जोधपुर की धान मंडी में पहली बार तिरंगा फहराया 1942 में उत्तरदाई शासन के लिए चलाए गए आंदोलन के दौरान गिरफ्तार करके कर्म से जोधपुर की सेंट्रल जेल सिवाना दुर्ग भिलाई महल एवं जालौर के किले में नजरबंद रखा गया

Pandit Nainu Ram Sharma ( पंडित नैनू राम शर्मा )

हाड़ौती क्षेत्र में प्रमुख क्रांतिकारी जिन्होंने हाडोती प्रजामंडल की स्थापना की इनकी 14 अक्टूबर 1941 को रात्रि में हत्या कर दी गई

Professor Gokul Lal should be ( प्रोफेसर गोकुल लाल असावा )

राजस्थान में देवली में 2 अक्टूबर 1921 में जन्मे श्री आसरा 1945 में शाहपुरा राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष बने विद्रोही स्वभाव निष्ठा पूर्ण संपूर्ण अद्वितीय प्रतिभा के धनी व प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी राजस्थान संघ के प्रधान मंत्री बनाए गए 1981 में इनका निधन हो गया

Baba Narasimha Das ( बाबा नरसिंह दास )

राजस्थान में स्वाधीनता संग्राम के अंतिम भामाशाहों और सेठ नरसिंह दास अग्रवाल में से एक थे जिन्होंने अपने लक्ष्य पूर्ति के लिए पत्र और मन के साथ ही अपनी पारिवारिक संपत्ति भी न्योछावर कर दी

Pandit Abhinn Hari ( पंडित अभिन्न हरि )

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के सुधारक झुंजार पत्रकार और ओजस्वी कवि पंडित विनय हरी का मूल नाम बद्री लाल शर्मा था कोटा के उन्होंने लोक सेवक साप्ताहिक समाचार पत्र प्रारंभ किया सन 1942 की अगस्त क्रांति में महात्मा गांधी के आह्वान पर 8 से 9 अगस्त 1942 को मुंबई ग्वालियर टैंक मैदान में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में कोटा से सम्मिलित होने वाले एकमात्र प्रतिनिधि थे 1941 में यह कोटा राज्य प्रजामंडल के अध्यक्ष बने

✍विशंभर दयाल

राजस्थान के अंचल के प्रसिद्ध क्रांतिकारी जो हार्ड डिक्स बोमकेश तथा आजाद और भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हैं

बाबू राजबहादुर

भरतपुर के स्वतंत्रता सेनानी स्वाधीन  का नया संविधान निर्मित करने के लिए बनाई गई संविधान सभा में मनोनीत किए गए मध्य प्रदेश के 2 प्रतिनिधियों में से एक श्री राजबहादुर वह दूसरे अलवर के श्री राम चंद्र उपाध्याय थे यह केंद्रीय मंत्रिमंडल में नेहरू सरकार के उप मंत्री भी रहे

शोभाराम कुमावत

अलवर निवासी श्री शोभाराम अलवर प्रजामंडल के साथ सक्रिय रुप से जुड़े रहे 18 मार्च 1948 को यह मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री बने राजस्थान सरकार द्वारा सहकारिता आंदोलन के अध्ययन के लिए इन की अध्यक्षता में शोभाराम कमेटी का गठन किया

स्वामी केशवानंद

मूल नाम वीरमा था उदासी मत के गुरु कुशलता से दीक्षित उन्होंने बीकानेर राज्य में ग्रामोत्थान विद्यापीठ संगरिया का निर्माण किया मरुभूमि में उन्होंने शिक्षा प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य किया

पंडित जुगल किशोर चतुर्वेदी

भरतपुर के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा जिनका जन्म मथुरा के शौक नामक प्राचीन कस्बे में हुआ जनता प्यार से उन्हें दूसरा जवाहरलाल नेहरू कहते थे

कपूरचंद पाटनी

जयपुर के स्वतंत्रता सेनानी पाटनी जी ने अपना सार्वजनिक जीवन सन 1920 में खादी बेचने से शुरू किया जिन्होंने जयपुर राज्य प्रजामंडल की स्थापना की प्रबंध समाज सुधारक और प्रगतिशील विचारधारा वाले श्री पाटनी ने बाल एवं वृद्धि का विरोध और विधवा विवाह का समर्थन

ऋषि दत्त मेहता

बूंदी के स्वतंत्रता सेनानी उन्होंने बूंदी राज्य लोक परिषद की स्थापना कर बूंदी में स्वतंत्रता आंदोलन को प्रोत्साहित किया वह ब्यावर में साप्ताहिक राजस्थान नामक प्रकाशन किया उनका समस्त परिवार आजादी के आंदोलन में जेल गया था

उपेंद्र नाथ त्रिवेदी

बांसवाड़ा के स्वतंत्रता सेनानी भूपेंद्र नाथ ने मुंबई से एक साप्ताहिक पत्र संग्राम का प्रकाशन शुरू किया उन्होंने आदिवासियों के जुल्म के खिलाफ संगठित करने और चेतना लाने का कार्य शुरू किया बांसवाड़ा प्रजामंडल के यह प्रमुख नेता रहे थे उत्तरदाई लोकप्रिय सरकार में 18 अप्रैल 1948 को मुख्यमंत्री बनाए गए

कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी

इनका जन्म सीकर जिले की नीमकाथाना कस्बे में 1906 में हुआ था इनके बड़े भ्राता श्री रामनारायण चौधरी भी बड़े देश भक्त था गांधीजी के निकटतम सहयोगी थे 1921 में यह असहयोग आंदोलन में कूद पड़े 1936 में जब श्री राम नारायण चौधरी ने नवज्योति सप्तक का प्रकाशन प्रारंभ किया तो दुर्गा प्रसाद दिन से जुड़ गए तथा 1941 में इस पत्र का पूर्ण दायित्व उनके कंधों पर आ गया

बृज मोहन लाल शर्मा

ब्यावर के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी श्री शर्मा मजदूर को दलितों के मसीहा माने जाते थे सन 1955 में उन्होंने अजमेर में मध्यस्थ उन्मूलन अधिनियम लागू किया जिन्होंने ब्यावर में राष्ट्रीय मिल मजदूर संघ की स्थापना

चंदनमल बहड़

चूरू के स्वतंत्रता सेनानी जन्नतुल शहर के मध्य स्थित धर्म स्तूप पर तिरंगा फहराया राष्ट्रीय गीत गाए और पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने का संकल्प दिलाया बाढ़ उनके साथियों ने लंदन में आयोजित दूसरा गोलमेज सम्मेलन के अवसर पर बीकानेर राज्य के आतंक और अत्याचारों का कच्चा चिट्ठा बीकानेर दिग्दर्शन नाम से तैयार करो ने हजारों नागरिकों के साथ लंदन पहुंचा दिया

सुमनेश जोशी

जोधपुर में 1916 में जन्मे जोशी ने 16 वर्ष की आयु में ही राष्ट्रीय भावना और बहुत क्रोध कविताएं लिखना शुरु कर दिया था 1945 में अंत में उन्होंने जोधपुर में रियासत इस पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।

पंडित हरिनारायण शर्मा

अलवर राज्य में जनजाति जागृति काश रेवा के पुजारी पंडित हरिनारायण को दिया जाता है उन्होंने पिछड़ी जातियों हरिजनों तथा अन्य तथा कथित उच्च जातियों के उत्थान के लिए कार्य किया तथा वाल्मीकि संग आदिवासियों संघ और अस्पृश्यत के लिये कार्य किया

श्यामजी कृष्ण वर्मा

राजस्थान के सभी क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत एवं मार्गदर्शन जो स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से राजस्थान में क्रांतिकारी गतिविधियों के मुख्य सुधारक बने श्याम जी स्वदेशी वस्तुओं के प्रबल समर्थक थे उन्होंने इंग्लैंड में इंडिया हाउस की स्थापना की उन्हें के एक शिष्य मदनलाल ढींगरा ने 1 जुलाई 1992 को भारत सचिव कर्जन वायली को गोली मार दी थी

बालमुकुंद बिरसा

जोधपुर के वीर अमर शहीद जिनकी 19 जून 1920 को जोधपुर केंद्रीय कारागृह में भूख हड़ताल के दौरान तबीयत खराब होने से अस्पताल में मृत्यु हो गई थी

Gokul g verma ( गोकुल जी वर्मा )

भरतपुर की जन जागृति में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया वहां की जनता उन्हें सेवर भरतपुर का को संबोधित करती थी

Vaidya Mangaram ( वैद्य मंगाराम )

बीकानेर रियासत में आजादी के आंदोलन का जनक कहा जाता है 1936 में इन्होंने बीकानेर प्रजामंडल की स्थापना की 1946 में यह बीकानेर राज्य प्रजा परिषद के अध्यक्ष बने और दूधवाखारा किसान आंदोलन में भाग लिया

Jeetamal Purohit ( जीतमल पुरोहित )

जैसलमेर के स्वतंत्रता सेनानी की श्री पुरोहित पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जैसलमेर में तिरंगा झंडा फहराया था जैसलमेर में निर्वाचित किए जाने के बाद उन्होंने बीकानेर का जन आंदोलन भी संभाला था

आधुनिक महिला व्यक्तित्व ( Modern Female personality )

Janki Devi Bajaj ( जानकी देवी बजाज )

श्रीमती जानकीदेवी बजाज गाँधीवादी जीवनशैली की कट्टर समर्थक थीं, उन्होंने कुटीर उद्योग के माध्यम से मात्र आठ साल की कच्ची उम्र में ही उनका विवाह, संपन्न बजाज घराने में कर दिया गया। विवाह के बाद उन्हें 1902 में जरौरा छोड़ अपने पति जमनालाल बजाज के साथ महाराष्ट्र वर्धा आना पड़ा।

जानकी देवी ने जमनालाल के कहने पर सामजिक वैभव और कुलीनता के प्रतीक बन चुके पर्दा प्रथा का भी त्याग कर दिया। उन्होंने सभी महिलाओं को भी इसे त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। साल 1919 में उनके इस कदम से प्रेरित हो कर हज़ारों महिलाएं आज़ाद महसूस कर रही थी, जो कभी घर से बाहर भी नहीं निकलीं थीं।

भारत में पहली बार 17 जुलाई 1928 के ऐतिहासिक दिन को जानकी देवी अपने पति और हरिजनों के साथ वर्धा के लक्ष्मीनारायण मंदिर पहुँचीं और मंदिर के दरवाजे हर किसी के लिए खोल दिए।

गौसेवा के प्रति उनके जूनून के चलते वो 1942 से कई सालों तक अखिल भारतीय गौसेवा संघ की अध्यक्ष रहीं।

उनके आजीवन कार्यों के लिये भारत सरकार द्वारा उन्हें 1956 में पद्मविभूषण दिया गया

Ratan Shastri ( श्रीमती रतन शास्त्री ) 



स्कू ल मास्टर के मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी रतनजी की परवरिश ममता और अनुशासन के मिले-जुले वातावरण में हुई जो कि समृद्ध व्यक्तित्व के विकास के लिए सर्वथा अनुकूल था। छोटी उम्र में ही विवाह हो जाने से उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं के बराबर हुई। किन्तु शिक्षा इन्सान में निहित परिपूर्णता का ही प्रकट रुप है, इस दृष्टि से उन्हें शिक्षा विभूषित ही माना जाना चाहिए।

इसीलिए जब उनके पति महोदय ने भूतपूर्व जयपुर रियासत के गृह एवं विदेश विभाग के प्रतिष्ठा-प्राप्त सचिव पद से त्यागपत्र देकर एक छोटे से दूर-दराज के, पिछड़े हुए गाँव में ग्रामीण पुनर्रचना के कार्य को समर्पित होना चाहा, तो रतनजी ने भी तमाम कठिनाइयों और कष्टों में उनका साथ दिया।

शहर से दूर यह छोटा-सा गाँव था वनस्थली, जहाँ सिर्फ बैलगाड़ी में ही जाया जा सकता था। इस गाँव में शास्त्री दंपति ने अपनी ही जैसी लगन के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देकर अन्य गाँवों के विकास कार्य के लिए उन्हें उकसाया।

1929 के उस जमाने के राजस्थान में एक मध्यवर्गीय महिला द्वारा पर्दे के चलन को और गहनों को त्याग देना बहुत बड़े साहस का काम था। औरों के सामने आदर्श रख, उसके अनुसार कृति करने  के लिये उन्हें प्रेरित करना अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इस प्रकार, उन कठिन दिनों में भी कई महिला कार्यकर्ता सामाजिक कार्य करने के लिये तैयार हुई।

गाँव में जो काम शास्त्री दंपति ने आरंभ किया, उसमें खादी और आत्मनिर्भरता, साक्षरता प्रसार, डाक्टरी सहायता तथा सामाजिक एवं राजनीतिक जागरण के कार्यक्रम शामिल ते। 1929 में शास्त्री दंपति ने ग्रामीण विकास तथा देश के अन्य भागों में तत्सम कार्य को फैलाने के ळिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से जीवन कुटीर नामक संस्था की स्थापना की।

शास्त्री दंपति की पुत्री शांता की 12 वर्ष की छोटी आयु में असमय मृत्यु हो गई। शांता छोटे बच्चों को पढ़ाने में रुचि रखती थी, स्कूल खोलने का सपना देखती थी और इस स्कूल के लिए उसने अपने हाथों से 600 ईंटें भी बनायी थीं। रतनजी ने शांता का अधूरा सपना पूरा करने की प्रतिज्ञा कर ली।

यही है उस वनस्थली विद्यापीठ की जन्म कहानी जिसको लेकर रतनजी का नाम आज चारों तरफ पहुँचा हुआ है। महिलाओं की शिक्षा एवं प्रशिक्षण की एक राष्ट्रीय संस्था के रुप में इस विद्यापीठ की स्थापना 1935 में की गयी। इस नये कार्यक्रम में व्यस्त रहते हुए भी उन दिनों श्रीमती शास्त्री ने जयपुर सत्याग्राह के संगठन में प्रमुख हिस्सा लिया।

यह विद्यापीठ एक ऐसा अनोखा शिक्षा केद्र है, जहाँ महिलाओं के लिए नर्सरी से लेकर स्नातकोत्तर शिक्षा तक की सुविधा है और भारत की बुनियादी संस्कृति एवं परंपरा को हानि पहुँचाये बगैर यहाँ लड़कियों को आधुनिक शिक्षा दी जाती है।

1935 में जब विद्यापीठ की स्थापना हुई थी, उस समय घर की चारदीवारी में बंद लड़कियों को विद्यापीठ में ले आना और उन्हें साधारण रुप में पढ़ाना अपने आप में बहुत भारी काम था। हालाँकि उस समय भी विद्यापीठ का उद्देश्य लड़कियों को ऐसी शिक्षा देना ही रहा, जिससे उन्हें समाज में सम्मान और समान स्थान मिल सके। अब समय के साथ बदलते संदर्भों में लड़कियों को सिर्फ सामान्य रुप से शिक्षित करने से काम नहीं चलता, बल्कि दिनोंदिन आधिकाधिक स्पर्धात्मक बनते जा रहे समाज में स्पर्धा का सामना करने की क्षमता उनमें समान रुप से पैदा करना विद्यापीठ का उद्देश्य बना है।

भारत सरकार ने उन्हें 1955 में पद्मश्री से तथा 1975 में पद्मभूषण से सम्मानित कर उनके कार्य का गौरव किया है। 1990 में इनको  जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

श्रीमती रतनशास्त्री का देहावसान 29 सितम्बर, 1988 को हुआ। आपका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ विद्यापीठ परिसर में 30 सितम्बर, 1988 को सम्पन्न हुआ।

 

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