राजस्थान के दर्शनीय स्थल पार्ट-2

 

राजस्थान के दर्शनीय स्थल ( Rajasthan Tourist Places Part 02 )

डूंगरपुर के दर्शनीय स्थल  ( Tourist places in Dungarpur )

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विजय राजराजेश्वर मंदिर

उदय विलास पैलेस

अद्भुत, अभूतपूर्व और उत्कृष्ट संरचना – उदय विलास पैलेस। महाराजा उदयसिंह द्वितीय के नाम पर उदय विलास पैलेस का नाम रखा गया था। बेजोड़ राजपूत वास्तुशिल्प शैली पर आधारित इसका मंत्रमुग्ध करने वाला रेखांकन है, जिसमें छज्जे, मेहराब और झरोखों में विस्तृत चित्रांकन किया गया है। यहां पाए जाने वाले पारेवा नामक स्थानीय नीले ’धूसर’ पत्थर से बनाई गई संुदर कलाकृति झील की ओर मुखरित है। महल को रानीवास, उदय विलास और कृष्ण प्रकाश में विभाजित किया गया है जिसे ’एकथंभिया महल’ भी कहा जाता है। एकथंभिया महल राजपूत वास्तुकला का एक वास्तविक आश्चर्य है जिसमें जटिल मूर्तिस्तम्भ और पट्टिका, अलंकृत छज्जे, जंगला, कोष्ठक वाले झरोखे, मेहराब और संगमरमर में नक़्काशियों की सजावट शामिल है। उदय विलास पैलेस आज एक हैरिटेज होटल के रूप में पर्यटकों को आकर्षित करता है तथा शाही ठाट-बाट का असीम आनन्द देता है।

जूना महल

राजपूती शान का प्रतीक और महल के साथ साथ गढ़ के समान सुदृढ और सुरक्षित है जूना महल। 13वीं शताब्दी में निर्मित जूना महल (ओल्ड पैलेस) एक सात मंज़िला इमारत है। यह एक ऊँची चौकी पर ’पारेवा’ पत्थर से बनाया गया है जो बाहर से एक क़िले के रूप में प्रतीत होता है। शत्रु से रक्षा हेतु यथा संभव गढ़ की प्राचीरों, विशाल दीवारों, संकरे गलियारांे और द्वारों को विराट रूप में योजनाबद्ध तरीक़े से बनाया गया है। अंदरूनी भाग में बने सुंदर भित्ति चित्रों, लघु चित्रों और नाज़ुक काँच और शीशे की सजावट का काम पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। सन् 1818 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। यह जगह डूंगरपुर प्रिसंली स्टेट की राजधानी थी।

गैब सागर झील

इस झील के प्राकृतिक वातावरण और कोलाहल से दूर होने के कारण यहाँ बड़ी संख्या में पक्षियों का बसेरा है। रमणीय झील गैप सागर डूंगरपुर का एक प्रमुख आकर्षण है इसके तट पर श्रीनाथ जी का मंदिर समूह है। इस मंदिर परिसर में कई अति सुंदर नक़्काशीदाार मंदिर और एक मूल मंदिर, ’विजय राजराजेश्वर’ मंदिर शामिल है। यहाँ भगवान शिव का मंदिर मूर्तिकारों के कुशल शिल्पकौशल और डूंगरपुर की बेजोड़ शिल्पकला को प्रदर्शित करता है। यहाँ के रमणीय परिवेश और ठण्डी बयार के बीच, झील में खिले हुए कमल के फूल और उन्मुक्त जल क्रीड़ा करते पक्षी मन्त्रमुग्ध करते हैं।

राजकीय पुरातात्विक संग्रहालय

डूंगरपुर के आमझरा गाँव में, जो कि शहर से 32 कि.मी. दूर है, पुरातात्पिक महत्व की सम्पदा को संजोकर रखा गया है इस संग्रहालय में। उत्खनन के दौरान यहाँ पर गुप्तकालीन संस्कृति के अवशेष पाए गए थे। मुख्य रूप से वागड़ क्षेत्र में यह संग्रहालय राजस्थान सरकार, पुरातत्व और संग्रहालय विभाग द्वारा एकत्र की गई मूर्तियों को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। डूंगरपुर शाही परिवार ने संग्रहालय को भूमि और निजी संग्रह से प्रतिमाओं और अपने ऐतिहासिक महत्वपूर्ण शिलालेखों को देकर इसे स्थापित करने में मदद की। इस संग्रह में 6ठी शताब्दी की कई देवी देवताओं की मूर्तियां, पत्थर के शिलालेख, सिक्के और चित्र शामिल हैं। गाँव में उत्खनन के दौरान प्राप्त ’महिषासुरमर्दिनी देवी’ की मूर्ति अद्भुत है।

बादल महल

यह महल वास्तुकला के जटिल डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध है तथा गैप सागर झील के किनारे स्थित है। पारेवा पत्थर का उपयोग करते हुए बनाया गया बादल महल, डूंगरपुर का एक नायाब महल है। गैप सागर झील पर स्थित यह महल अपने विस्तृत आलेखन और राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली की एक मिली जुली संरचना के लिए प्रसिद्ध है। स्मारक में दो चरणों में तीन गुंबद और एक बरामदा महाराज पुंजराज के शासनकाल के दौरान पूरा किया गया था। अवकाश गृह या गैस्ट हाउस के तौर पर इस महल का, राज्य के मेहमानों को ठहराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

बेणेश्वर मंदिर

सोम व माही नदियों में डुबकी लगाने के बाद, बेणेश्वर मंदिर में भगवान शिव की आराधना करने के लिए भक्तगण समर्पण के भाव से आते हैं। इस अंचल के सर्वाधिक पूजनीय शिवलिंग बेणेश्वर मंदिर में स्थित है। सोम और माही नदियों के तट पर स्थित पांच फीट ऊँचा ये स्वयंभू शिवलिंग शीर्ष से पांच हिस्सों में बंटा हुआ है। बेणेश्वर मंदिर के पास स्थित विष्णु मंदिर, एक अत्यंत प्रतिष्ठित संत और भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले ’मावजी’ की बेटी, जनककुंवरी द्वारा 1793 ई. में निर्मित किया गया था। कहा जाता है कि मंदिर उस स्थान पर निर्मित है जहां मावजी ने भगवान से प्रार्थना करते हुए अपना समय बिताया था। मावजी के दो शिष्य ’अजे’ और ’वाजे’ ने लक्ष्मी नारायण मंदिर का निर्माण किया। यद्यपि ये अन्य देवी देवता हैं, पर लोग उन्हें मावजी, उनकी पत्नी, उनके पुत्र वधू और शिष्य जीवनदास के रूप में पहचानते हैं। इन मंदिरों के अलावा भगवान ब्रह्मा का मन्दिर भी है। माघ शुक्ल पूर्णिमा (फरवरी) यहाँ, सोम व माही नदियों के संगम पर बड़ा भारी मेला लगता है, जहाँ दूर दूर के गाँवों तथा शहरों से लोग तथा आदिवासी, पवित्र स्नान करने व मंदिर में पूजा करने आते हैं।

भुवनेश्वर

डूंगरपुर से मात्र 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भुवनेश्वर पर्वत के ऊपर स्थित है और एक शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर स्वयंभू शिवलिंग के समीप ही बनाया गया है। पहाड़ के ऊपर स्थित एक प्राचीन मठ की भी यात्रा की जा सकती है।

सुरपुर मंदिर

डूंगरपुर से लगभग 3 किलोमीटर दूर ’सुरपुर’ नामक प्राचीन मंदिर गंगदी नदी के किनारे पर स्थित है। मंदिर के आस पास के क्षेत्र में भूलभुलैया, माधवराय मंदिर, हाथियों की आगद और महत्वपूर्ण शिलालेख जैसे अन्य आकर्षण भी हैं।

विजय राजराजेश्वर मंदिर

भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को समर्पित ’विजय राजराजेश्वर मंदिर’ गैप सागर झील के तट पर स्थित है। यह अपने समय की उत्कृष्ट वास्तुशिल्प को प्रदर्शित करता है। मंदिर का निर्माण महाराज विजय सिंह द्वारा प्रारम्भ किया गया था एवं जिसे महारावल लक्ष्मणसिंह द्वारा 1923 ई. में पूरा किया गया। दक्षिण प्रवेश द्वार दो मंज़िला है। गर्भ गृह में एक ऊँचा गुबंद है। इसके सामने सभा मंडप है – जो 8 राजसी स्तंभों पर बनाया गया है। इसमें बीस तोरण थे जिनमें से चार अभी भी मौजूद हैं। अन्य सोम नदी में आई बाढ़ के पानी से नष्ट हो गए थे। तीर्थ यात्रियों के द्वारा कई शिलालेख हैं और सबसे पुराना 1493 ईस्वी के अंतर्गत आता है। कई योद्धाओं के अंतिम संस्कार मंदिर के समीप किए गए थे और उनके सम्मान में स्मारक बनाये गये थे। इस मंदिर की बहुत मान्यता है।

श्रीनाथ जी मंदिर

भगवान कृष्ण का यह मंदिर तीन मंजिला कक्ष मंे है, जो यहाँ स्थित तीनों मंदिरों के लिए गोध मंडप, एक सार्वजनिक कक्ष है। 1623 में महाराज पुंजराज ने इस मंदिर का निर्माण कराया। इसका प्रमुख आकर्षण श्री राधिकाजी और गोवर्धननाथ जी की मूर्तियां है। इसी परिसर में श्री बांकेबिहारी जी और श्री रामचन्द्र जी को समर्पित कई मंदिर भी हैं। पर्यटक यहाँ एक गैलेरी देख सकते हैं, जो मुख्य मंदिर में है।

गोध मंडप

गोध मंडप एक तीन मंजिला विशाल सभा मंडप है जो पास स्थित तीनों मंदिरों द्वारा आपसी उपयोग के लिए है। 64 पैरों और 12 खम्भों पर अवस्थित, यह विशाल सभा मंडप देखने योग्य है।

नागफन जी

डूंगरपुर रेल्वे स्टेशन से यह दिगम्बर जैन समुदाय का मंदिर, 35 कि.मी. की दूरी पर है। नागफनजी अपने जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है जो न केवल डूंगरपुर के भक्तों को आकर्षित करते हैं बल्कि दूर दूर से यात्रा पर आये पर्यटक भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। यह मंदिर देवी पद्मावती, नागफनी पार्श्वनाथ और धरणेन्द्र के प्रतिमाओं के मंदिर हैं। नागफनजी शिवालय जो इस मंदिर के नजदीक स्थित है, यह भी एक पर्यटक आकर्षण है। इस स्थान पर गुरू पूर्णिमा पर विशेष आयोजन होता है।

गलियाकोट

दसवीं शताब्दी में बाब जी मौला सैयदी फख़रूद्दीन साहब का निवास था यहाँ। दाऊदी बोहरा समाज का पवित्र स्थान है ’गलियाकोट दरगाह’। डूंगरपुर से 58 किलोमीटर की दूरी पर माही नदी के किनारे स्थित, गलियाकोट नामक एक गांव है। यह स्थान सैयद फख़रूद्दीन की मज़ार के लिए जाना जाता है। वह एक प्रसिद्ध संत थे जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद गांव में ही दफन किया गया था। यह मज़ार श्वेत संगमरमर से बनायी गयी है और उनकी दी हुई शिक्षाएं दीवारों पर सोने के पानी से उत्कीर्ण हैं। गुंबद के अन्दरूनी हिस्से को खूबसूरत स्वर्णपत्रों से सजाया गया है, जबकि पवित्र कुरान की शिक्षाओं को कब्र पर सुनहरे पन्नों में उत्कीर्ण किया गया है। मान्यताओं के अनुसार इस गांव का नाम एक भील मुखिया के नाम पर पड़ा था, जिसने यहाँ राज किया था।

देव सोमनाथ

देवगाँव में स्थित यह मंदिर, अपनी बनावट के लिए प्रसिद्ध है। तीन मंज़िलों में बना यह मंदिर, 150 स्तम्भों पर खड़ा है। देव सोमनाथ के नाम पर 12वीं सदी में बना सोम नदी के किनारे पर एक पुराना और सुंदर शिव मंदिर है। सफेद पत्थर से बने, मंदिर में ऊँचे बुर्ज़ बनाये गये हैं। कोई भी मंदिर से आकाश को देख सकता है। यद्यपि चिनाई में प्रत्येक भाग अपने सही स्थान पर मजबूती से टिकाया गया है, फिर भी यह आभास देता है कि प्रत्येक पत्थर ढह रहा है। मंदिर में 3 निकास हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रत्येक गुंबद में एक नक़्काशीदार कमल खिले हैं, जबकि सबसे बड़े गुंबद में तीन कमल खिले हैं। सावन के महीने में यहाँ बड़ी संख्या में दर्शनार्थी आते हैं।

बोरेश्वर

1179 ईस्वी में महाराज सामंत सिंह के शासनकाल में ’बोरेश्वर महादेव’ मंदिर का निर्माण हुआ था। यह सोम नदी के तट पर स्थित है।

क्षेत्रपाल मंदिर

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाला 200 वर्ष पुराना यह मंदिर ’खाडगढ़’ में स्थित है। इस मंदिर की लोकप्रियता भैरव देवी के मंदिर होने के कारण है। इस मंदिर के चारों ओर अन्य छोटे मंदिर हैं, जिनमें देवी गणपति, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान हनुमान स्थापित हैं।

गंगानगर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Ganganagar )

बरोर गाँव

इस गाँव में प्रसिद्ध प्राचीन सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यह गाँव अनूपगढ – रामसिंहपुर रोड पर स्थित है। उस समय के समृद्ध जीवन के सबूत-कलाकृतियाँ, कंकाल और खंडहर गाँव के आसपास के क्षेत्र में पाए गए हैं

लैला मजनूं का मज़ार

लैला मजनूं का मज़ार – अनूपगढ़ से 11 कि.मी. बिन्जौर गाँव में लैला मजनू का मज़ार यानी स्मारक स्थित है। एक किंवदंती के अनुसार लैला मजनू सिंध के थे यह ज़िला अब पाकिस्तान में है। लैला के माता पिता व भाई उसके प्रेम के खिलाफ थे, इसलिए उनसे बचने के लिए लैला-मजनू भाग कर यहा आकर बस गए तथा मृत्योपरांत दोनों को एक साथ यहाँ दफनाया गया था। यह मजार एक स्मारक बन गया है जो हमेशा अमर रहने वाले प्रेम का प्रतीक है। लोग इस मजार पर, इस प्रेमी युगल का आशीर्वाद पाने के लिए दूर-दूर से यहाँ आते हैं। प्रतिवर्ष यहाँ एक मेला आयोजित होता है जो मुख्यतः नवविवाहितों और युगलों को आकर्षित करता है।

अनूपगढ़ क़िला

पाकिस्तान की सीमा के निकट अनूपगढ शहर में स्थित अनूपगढ़ किला वर्तमाान में खंडहर है। यद्यपि अपने सुनहरे दिनों में किला एक भव्य रूप में था जो कि भाटी राजपूतों को खाडी में रहने में मदद करता था। क़िले का निर्माण 1689 में अनूपगढ को मुगल संरक्षण में रखने हेतु मुगल राज्यपाल द्वारा किया गया था।

हिंदुमालकोट सीमा

गंगानगर में स्थित हिंदुमालकोट सीमा भारत आौर पाकिस्तान को अलग करती है। बीकानेर के दीवान हिन्दुमल के सम्मान में नामित, और सीमा के पास स्थित यह पर्यटक आकर्षणों में से एक है। सीमा श्री गंगानगर से 25 किमी दूर स्थित है और यह प्रतिदिन 10.00 से 5.30 के बीच पर्यटकों के लिए खुली है।।

बुड्ढ़ा जोहड़ गुरूद्वारा

इस ऐतिहासिक गुरूद्वारे का निर्माण, 1740 में घटी एक महत्वपूर्ण घटना के कारण किया गया जिसमें मस्सा रंगहर के अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अपवित्रीकरण का दोषी पाए जाने पर सुक्खा सिंह और मेहताब सिंह द्वारा न्याय किया गया था। गंगानगर के डाबला गांव में स्थित यह पूजा स्थल ऐतिहासिक चित्रों और स्मारकों का संग्रह भी है।

पदमपुर

बीकानेर के शाही परिवार के राजकुमार पदम सिंह के नाम पर, इस नगर का नाम रखा गया था। गंगनहर के निर्माण के बाद, यहाँ की उपजाऊ मिट्टी में गेहूँ, बाजरा, गन्ना, दलहन, आदि की अच्छी फसलें होने पर, यह एक कृषि केन्द्र के रूप में माना जाता है। गंगानगर का कीनू (नारंगी जैसा फल) पूरे भारत में मश्हूर है तथा यहां भारी मात्रा में इसकी फसल होती है।

हनुमानगढ के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Hanumangarh )

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 भटनेर किला

भटनेर, भट्टी नगर का अपभ्रंश है, तथा उत्तरी सीमा प्रहरी के रूप में विख्यात है। भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाने वाला भटनेर किला या हनुमानगढ़ किला घग्घर नदी के तट पर स्थित है। किले का महत्व इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अकबर ने आईने-ए-अकबरी में इसका उल्लेख किया है। किले का निर्माण लगभग 17 सौ साल पहले जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र भूपत ने किया था और समय और युद्ध के विनाश का सीना तान के सामना किया था। तैमूर और पृथ्वीराज चौहान सहित कई साहसी शासकों ने किले पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन यह ऐसी ताकत थी कि सदियों से कोई भी इस क़िले को नहीं जीत पा रहा था। अंत में, वर्ष 1805 में, बीकानेर के राजा सूरत सिंह ने भाटी राजाओं को पराजित किया और क़िले पर क़ब्जा कर लिया। क़िले के कई दृढ ़ और शानदार द्वार हैं। यहां पर भगवान शिव और भगवान हनुमान को समर्पित मंदिर हैं। इसके ऊँचे दालान तथा दरबार तक घोड़ांे के जाने के लिए संकडे़ रास्ते बने हुए हैं।

श्री गोगा जी मंदिर

इस मंदिर को हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के लोग मानते हैं। हिन्दू गोगाजी को गोगा जी देवता तथा मुस्लिम इन्हें गोगा पीर कहते हैं। हनुमानगढ़ से लगभग 120 किलोमीटर दूर, श्री गोगाजी का मंदिर स्थित है। किंवदंती प्रचलित है कि गोगाजी एक महान योद्धा थे जो आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करते थे उन्हें नागों के भगवान भी कहा जाता है। मंदिर के स्थापत्य में मुस्लिम और हिन्दू शैली का समन्वय एक प्रमुख विशेषता है। मंदिर अद्भुत नक्काशियों के साथ चित्रित है जिसमें अश्व की पीठ पर हाथ में बरछा लिए हुए गोगाजी की एक सुन्दर प्रतिमा, जिसमें उनकी गर्दन के चारों और एक नाग है। सभी धर्मों के लोग, विशेष रूप से गोगामेड़ी पर्व के दौरान मंदिर में जाते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष भादवा शुक्लपक्ष की नवमी (जुलाई – अगस्त) को मेला लगता है, जिसमें भक्त लोग पीले वस्त्र पहनकर, मीलों दूर से दण्डवत करते हुए आते हैं।

गोगामेड़ी का दृश्य

गोगामेड़ी का दृश्य हनुमानगढ़ में स्थित गोगामड़ी गांव धार्मिक महत्व रखता है। श्री गोगाजी की स्मृति में आयोजित गोगामेड़ी मेला, ’गोगामेड़ी महोत्सव’ के दौरान स्थानीय लोगों और पर्यटकों को समान रूप से आकर्षित करता है। गोगामेड़ी का विशाल दृश्य फोटोग्राफी के लिए वास्तव में एक आश्चर्यजनक और प्रेरणादायक समां प्रस्तुत करता है।

काली बंगा

सिंधु नदी की घाटी पर बना यह क्षेत्र पुरातत्व सम्पदाओं को प्रदर्शित करता है। तहसील पीलीपंगा में, कालीबंगा एक प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल है। कहते हैं कि 4500 वर्ष पूर्व यहाँ सरस्वती नदी के किनारे हड़प्पा कालीन सभ्यता फल फूल रही थी। पुरातत्व प्रेमियों के लिए महत्वपूर्ण स्थान कालीबंगा सिन्धु घाटी सभ्यता के अवशेषों की प्राप्ति स्थल के कारण प्रसिद्ध है। ये अवशेष 2500 वर्ष ईसा पूर्व के हड़प्पा और पूर्व हड़प्पा युग से संबंधित हैं। कालीबंगा में खुदाई से हड़प्पाकालीन सील, मानव कंकाल, अज्ञात स्क्रिप्ट तांबे की चूंड़ियाँ, मोती, सिक्के, टेराकोटा और सीप के खिलौने मिले हैं। यहां 1983 में स्थापित एक पुरातत्व संग्रहालय भी है, जिसे 1961-1969 के दौरान हड़प्पा स्थल पर खुदाई से निकले अवशेषों के लिए निर्मित किया गया था। यहां संग्रहालय में तीन दीर्घाएं हैं जिनमें एक दीर्घा ’पूर्व हड़प्पा काल’ और शेष दो दीर्घाएं हड़प्पा काल की कलाकृतियों के लिए समर्पित हैं।

माता भद्रकाली मंदिर

हनुमानगढ़ से 7 कि.मी. की दूरी पर माता भद्रकाली का मंदिर घग्घर नदी के तट पर स्थित है। देवी मंदिर देवी दुर्गा के कई अवतारों में से एक को समर्पित है। बीकानेर के छठे महाराजा राम सिंह के द्वारा निर्मित, इस मंदिर में पूरी तरह लाल पत्थर से बनी एक प्रतिमा स्थित है। मंदिर पूरे सप्ताह जनता के लिए खुला है। चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में यहाँ बड़ी धूमधाम रहती है।

जयपुर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Jaipur )

पूर्व का पेरिस, गुलाबी नगर तथा सी.वी. रमन के शब्दों मे रगश्री के द्रीप (Island of Glory) के नाम से प्रसिद्ध था। जयपुर की स्थापना – 18 नवम्बर,1727 को। शासक-: कछवाहा नरेश सवाई जयसिंह-|| द्रारा 9 खेड़ो का अधिग्रहण कर के किया गया।

  • प्रमुख वास्तुकार :- श्री विधाधर चक्रवर्ती एवं आनंदराम मिस्त्री।
  • सलाहकार :- मिर्जा इस्माइल थे।
  • नगर की नींव:- पं. जगन्नाथ सम्राट के ज्योतिष ज्ञान के आधार पर लगवायी थी।
  • बसावट:- ‘द एल्ट स्टडट एर्लग’ जर्मनी शहर के आधार पर।
  • पूरा शहर चोपड़ पैटर्न ( 9 आड़ी रेखाओ व 9सीधी रेखाओ) पर अनेक वर्गाकार मे हैं।
  • प्रिंस अल्बर्ट के आगमन पर जयपुर शहर को गुलाबी रंग मे रंगवाने का श्रेय सम्राट रामसिंह -|| 1835-80) को हैं।

नाहरगढ़ की वादियों मे तैयार होगा ‘ इंटरनेशनल गार्डन’, नाहरगढ़ वन्यजीव क्षेत्र राज्य क पहला इटरनेशनल गार्डन बनेगा। विभाग ने मसोदा तैयार कर.के 63 वर्ग km.क्षेत्र मे (जनवरी 2016)मे

नाहरगढ़ का किला:– ‘ सुदर्शनगढ़ ‘ के नाम से जाना जाता हैं।

  • निर्माण:- 9 महल युक्त 1734ई.सवाई जयसिंह-||ने।
  • वर्तमान रुप :-1868ई. सवाई रामसिंह द्रारा प्रदान किया।
  • अरावली पर्वतमाला पर यह दुर्ग जयपुर के मुकुट के समान है।
  • सवाई माधोसिंह -|| ने अपनी 9 पासवानों के नाम पर 9 एक जैसे महल बनाये।
  • बगरु प्रिन्ट :- जयपुर से 30 किलोमीटर छपाई के लिए।

जयगढ़ का किला:- इसका निर्माण सवाई जयसिंह-1 -1726 ई. तथा मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया। तोप ढालने का कारखाना व जयबाण तोप ( एशिया की सबसे बड़ी तोप हैं। 22 मील।

गोविद देवजी का मंदिर:- 1735ई. सवाई जयसिंह।

कुण्डा:- पर्यटन के लिए हाथी गांव स्थापना।

आमेर:- नाम अम्बरीश ऋषि के नाम पड़ा। इसे अम्बरीशपुर या अम्बर भी कहा जाता हैं। जयपुर से 10 km. यह कछवाहा वंश की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध हैं। आमेर दुर्ग को विश्व विरासत सूची मे 21 जून 2013 को यूनेस्कों ने राज.के छ जिलों के साथ गिरी दुर्ग को भी विशव सूची मे शामिल किया।काकिलदेव ने 1036 ई.मे आमेर के मीणा शासक भुट्टो से दुर्ग छीन लिया।

महाराजा मानसिहं के काल मे अनेक निर्माण हुए। 1707ई. मे सम्राट बहादुर शाह प्रथम ने हस्तगत कर के नाम ‘ मोमिनाबाद ‘ रखा था।सांयकाल यहां पर ‘ लाइट एण्ड साउण्ड शो चलता’ हैं।

गणेशपोल:- आमेर का विशव प्रसिद्ध प्रवेश द्रार हैं।

  • निर्माण:- (1700-1743 ) 50 फीट ऊँचा 50 फीट चौड़ा मिर्जा राजा जयसिंह।
  • सुहाग (सौभाग्य) मंदिर:- गणेशपोल की छत पर।

आमेर का महल:- मावठा झील के पास। शीशमहल :-‘ दीवाने खास ‘ नाम से प्रसिद्ध आमेर स्थिति जयमंदिर। महाकवि बिहारी ने इन्हें ‘ दर्पण धाम’ कहा। शिलादेवी का मंदिर यह आमेर के महल मे शिलादेवी कि प्रसिद्ध महल हैं।

जगत शिरोमणी मंदिर:- यह वैष्णव मंदिर कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की याद मे।

सिलोरा:- देश का पहला आधुनिक व अंतरराष्ट्रीय टैक्सटाइल पार्क हैं। 

सिटी पैलेस(चन्द्रमहल) चाँदी के पात्र विश्व के सबसे बडे़ विश्व प्रसिद्ध हैं।

आरायश:- भितिचित्रो के लिए। स्थानीय भाषा मे ‘ आलागीला/मोराकसी’ कहा गया था।

शीतलामाता का मेला:- चाकसू तहसील शील डूँगरी पास।

गैटोर:- नाहरगढ़ तलहटी मे स्थिति जयपुर के दिवंगत राजाओं संगमरमर छतरियों के लिए।

राजेश्वर मंदिर:- आम जनता के लिए शिवरात्रि को ही खुलता।

हवामहल:- 1799ई. 5 मंजिला सवाई प्रतापसिंह। इमारत को लालचन्द कारीगर ने बनाया। राजकीय संग्रहालय मे परिवर्तित।

  • जयपुर शैली:- सजावट के लिए प्रसिद्ध हैं।
  • सिसोदिया रानी का महल एवं बाग:-जयसिंह द्रितीय की महारानी ने 1799ई. मे।
  • पोथीखाना:- निजी पुस्तकालया एवं चित्रकला।
  • कोटपुतली:- भारत का सबसे बड़ा दुग्ध पैकिंग स्टेशन।

ईसरलाट,बस्सी, जंतर-मंतर, गणेश मंदिर, रामनिवास बाग,मुबारक महल, गंधों का मेला, अल्बर्ट हाॅल संग्रहालय, जमुवा रामगढ़ अभयारण्य, रामगढ़ बाँध,आदि।

कानोता बाँध:- राजस्थान का सर्वाधिक मछली उत्पादक बाँध।

गलता,मोती डूँगरी, जगन्नाथ धाम गोनेर, चूलगिरी, चौमुँहागढ, जलमहल झील, बैराठ, कनक वृदांवन, संगीत कला, जवाहर.कला केन्द्र, बिडला मंदिर आदि जयपुर मे प्रसिद्ध हैं।

बिड़ला प्लेनिटोरियम:-17 मार्च, 1989 को जयपुर मे स्थापित था।

 

अलवर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Jaipur )

  • स्थापना:- 1770ई.राव प्रतापसिंह ने।
  • इनमे विनय विलास,सफदरजंग, नीमराणा दुर्ग दृश्य हैं।

सिलीसेढ़ झील:- अलवर से 16 km.दूर है इसको राजस्थान का ‘ नंदनकानन ‘ कहा जाता हैं। झील के किनारे महाराजा विनयसिंह ने रानी शीला की अद्भुत महल बनाया। वर्तमान मे होटल लेक पैलेस हैं।

पाण्डुपोल:- सरिस्का के दक्षिण मे पूर्व मे स्थिति इस पर पाण्डुओ ने अज्ञातवास 10वर्ष बिताये।

मूसीमहारानी की छतरी:- अस्सी खम्भों वाली इस छतरी का निर्माण 1815 ई.मे विनयसिंह ने करवाया।

भर्तृहरि:- उज्जैन के राजा व महान् योगी भर्तृृहरि की तपोस्थली अलवर से 345 km.हैं इसे कनफटे नाथों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

सरिस्का अभयारण्य:- अलवर से 35किलोमीटर दूर-जयपुर राजमार्ग फर सरिस्का गाँव स्थिति हैं। 1990 मे राष्ट्रीय उद्दान घोषित किया गया। हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध हैं। 27अगस्त,1982 को बाघ परियोजना के अंतर्गत शामिल किया।

बाला दुर्ग, कांकणबाड़ी का किला, नीलकण्ठ, जयसंमद,भिवाड़ी, रथ यात्रा सब अलवर मे पर्यटन के स्थल है।

बाड़मेर के दर्शनीय स्थल ( Tourist places in Jaipur )

कपड़ो पर रंगीन छापो के लिए विख्यात इस नगर की स्थापना 13 वीं सदी मे परमार राजा धरणीधर के पुत्र बाहादा राव नेकी थी। भीमाजी रत्नावत ने विक्रम संवत् 1642 मे वर्त्तमान बाड़मेर को बसाया।

सिवाना दुर्ग:- जालोर से 30 km. दूर स्थित सिवाना मे राजा राजभोज के पुत्र श्री वीरनारायण द्रारा वि.सं.1011 मे छप्पन की पहाड़ियों मे निर्मित यह दुर्ग प्रसिद्ध हैं

कपालेश्वर महादेव का मंदिर:- बाड़मेर जिले के चौहटन की विशाल पहाडी के बीच स्यित हैं।13वी शताब्दी मे निर्मित किया गया था।

गरीबनाथ का मंदिर:-इसकी स्थापना व़िसं. 900 मे कोमनाथ ने की। राजस्थान का खजुराहो किराडू ।

पंचभदा् झील.:- इस झील से उतम किस्म के नमक का उत्पादन किया जाता हैं। यहां स्थित 5 प्राचीन मंदिरों मे सोमेश्वर, शिव, विष्णु व ब्रह्मा मंदिर प्रसिद्ध हैं।

नागणेची माता का मंदिर, आलमजी का धोरा,जसोल, कनाना/कानन गैर मेला, किलोण आदि दर्शनीय स्थल हैं। यह ‘ घोडों का तीर्थ स्थल ‘ के उपनाम से प्रसिद्ध स्थल हैं।

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