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राजस्थान के लोकगीत

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  राजस्थान के लोक गीत ( Rajasthan Folk song ) 1.पावणा गीत (  Rendition song ) – नये दामाद के ससुराल आने पर स्त्रियाँ भोजन करवाते समय गीत गाती है 2.हम सीढों गीत ( ham sidhon geet ) यह उत्तरी मेवाड़ के भीलों का प्रसिद्ध लोकगीत हमसीढों कहलाता है इसे स्त्री व पुरुष मिलकर गाते है 3. लावणी जीत ( Lavani geet ) लावणी का मतलब बुलाने से है नायक के द्वारा नायिका को बुलाने के अर्थ में यह गीत गया जाता है,कुछ लावनियाँ जैसे मोरध्वज, भर्तहरि, सेउसमन की लावनियाँ. 4. कुरजा गीत ( Kurja song ) यह एक सुन्दर ￰पक्षी होता है जो पश्चिम राजस्थान में देखा जा सकता है यह गीत वर्षा ऋतू में गया जाता है ऐसा माना जाता हे की प्राचीन काल में वियोगिनी स्त्रियां आपने प्रदेश गए पति को बुलाने का सन्देश देती है 5. झोरवा गीत ( Zorva song ) प्रेमिका का वियोग में गाया जाता है यह राज्य के जैसलमेर में गाया जाता है इस गीत में प्रेमी के इंतजार में व्यथित स्त्री की विरह व्यथा का चित्रण प्रस्तुत कर प्रितम को घर आने का सन्देश देते हुए गाया जाता है “केसरिया बालम पधारो जी म्हारे देश” कला और संगीत संस्थान ( Arts and music institute ) जवाह

राजस्थान के लोकनाट्य

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  Rajasthan Folk drama ( राजस्थान के लोक नाट्य ) लोक नाट्यो में ‘तुर्रा कलंगी’ कम से कम 500 साल.पुराना हैं। मेवाड़ के दो पीर संतो ने जिनके नाम शाहअली और तुक्कनगीर थे ‘ तुर्राकलंगी ‘की रचना की। बीकानेर की ‘रम्मत’ की अपनी न्यारी ही विशेषता है 1. ख्याल:- नाटक मे जहाँ देखना और सुनना दोनों प्रधान होते है वहां ख्याल मे केवल सुनना प्रधान होता हैं। 18 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से ही राजस्थान में लोक नाट्यों के नियमित रुप से सम्पन्न होने के प्रमाण मिलते हैं। इन्हें ख्याल कहा जाता था। इन ख्यालों की विषय-वस्तु पौराणिक या किसी पुराख्यान से जुड़ी होती है। इनमें ऐतिहासिक तत्व भी होते हैं तथा उस जमाने के लोकप्रिय वीराख्यान आदि होते हैं।  भौगोलिक अन्तर के कारण इन ख्यालों ने भी परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग रुप ग्रहण कर लिए। इन ख्यालों के खास है, कुचामनी ख्याल, शेखावटी ख्याल, माँची ख्याल तथा हाथरसी ख्याल। ये सभी ख्याल बोलियों में ही अलग नहीं है। बल्कि इनमें शैलीगत भिन्नता भी है। जहाँ कुछ ख्यालों में संगीत की महत्ता भी है दूसरों में नाटक, नृत्य और गीतों का प्राधान्य है।  गीत प्राय: लोकगीतों पर आधारित है या शा

राजस्थान के प्रमुख संगीतज्ञ

  राजस्थान के प्रमुख संगीतज्ञ ( Rajasthan Chief Musicians ) 1. सवाई प्रताप सिंह –  जयपुर नरेश सवाई प्रताप सिंह संगीत एवं चित्रकला के प्रकांड विद्वान और आश्रयदाता थे इन्होंने संगीत का विशाल सम्मेलन करवाकर संगीत के प्रसिद्ध ग्रंथ राधा गोविंद संगीत सार की रचना करवाई जिसके लेखन में इनके राजकवि देवर्षि बृजपाल भट्ट का महत्वपूर्ण योगदान रहा  इनके दरबार में 22 प्रसिद्ध संगीतज्ञ एवं विद्वानों की मंडली गंधर्व बाईसी थी 2. महाराजा अनूप सिंह-  बीकानेर के शासक जो स्वयं एक विद्या अनुरागी तथा विद्वान संगीतज्ञ थे प्रसिद्ध संगीतज्ञ भाव भट्ट इन्हीं के दरबार में था 3. पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर-  यह महाराष्ट्र के थे इन्होंने संगीत पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे तथा संगीत को जन-जन तक पहुंचाया | 4. पंडित विष्णु नारायण भातखंडे  -प्रसिद्ध संगीत सुधारक एवं प्रचारक इनका जन्म 1830 में हुआ 5. पंडित उदय शंकर–  उदयपुर में जन्मे श्री उदय शंकर प्रख्यात कथकली नर्तक रहे हैं 6. पंडित रविशंकर.-  मैहर के बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खां के प्रमुख शिष्य प्रख्यात नृत्यकार पंडित उदय शंकर के अनुज पंडित रविशंकर वर्तमान में विश्व के शीर

राजस्थान के आधुनिक साहित्यकार

  राजस्थान के आधुनिक साहित्यकार ( Rajasthan Modern Writer ) 1. यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र’ उपन्यास – ‘हूं गोरी किण पीव री’ ‘जोग- संजोग, चांदा सेठानी’, ‘खम्मा अन्नदाता’, ‘मिट्टी का कलंक’, ‘जनानी ड्योढ़ी’, ‘हजार घोड़ों का सवार’, ‘ढोल कुंजकली’, ‘एक और मुख्यमंत्री’, ‘तासरो घर (नाटक)’, ‘जमारो’ ( कहानी)। 2. रांगेय राघव उपन्यास — ‘घरौंदे’, ‘मुर्दों का टीला’, ‘कब तक पुकारू’, ‘आज की आवाज’, ‘गदल(कहानी)’। 3. मणि मधुकर उपन्यास — ‘पगफेरो’, सुधि सपनो के तीर। रसगन्धर्व(नाटक)। खेला पालेमपुर(नाटक)। 4. विजय दान देथा (बिज्जी) उपन्यास — ‘साँच रो भरम, तिडो राव, माँ रो बदलो। कहानियां — अलेखूं, हिटलर, दुविधा, सम्भाल, बांता री फुलवारी 5. शिवचंद्र भरतिया उपन्यास — कनक सुन्दर( राजस्थान का पहला उपन्यास) केसरविलास (राजस्थानी का प्रथम नाटक)। 6. स्व. नारायण सिंह भाटी कविता संग्रह—सांझ, दुर्गादास, परमवीर, औलूँ, मीरा। 【बरसां रा डिगोड़ा डूंगर लाँघिया】 7. कन्हैयालाल सेठिया  धरती धोरां री ,पाथल एंव पीथल, लीलटांस, मींझर, जमीन रो धणी कूण, 8. श्रीलाल नथमल जोशी उपन्यास — आभैपटकी, एक बीनणी दो बींद, धोरा री छोरी, सबड़का (कहानी संग

राजस्थान की हस्तशिल्प

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  Rajasthan Handicrafts  राजस्थान की हस्तशिल्प मीनाकारी मीनाकारी का कार्य सोने से निर्मित हल्के आभूषणों पर किया जाता है । मीनाकारी जयपुर के महाराजा मानसिंह प्रथम लाहौर से अपने साथ लाए । लाहौर में यह काम सिक्खों द्वारा किया जाता था । जहां फारस से मुगलों द्वारा लाया गया । मीनाकारी के कार्य की सर्वोत्तम कृतिया जयपुर में तैयार की जाती है । जयपुर में मीना का कार्य सोना चांदी और तांबे पर किया जाता है । लाल रंग बनाने में जयपुर के मीना कार कुशल है । प्रतापगढ़ की  मीनाकारी थेवा कला  कहलाती है । प्रतापगढ़ में कांच पर थेवा कला का कार्य किया जाता है। मीना का काम  फाइनीशिया  में सर्वप्रथम किया जाता था।  कुदरत सिंह  को पद्मश्री से अलंकृत किया गया है। मीना कार्य नाथद्वारा में भी किया जाता है । महेश सोनी, राम प्रसाद सोनी, रामविलास ,बेनीराम ,जगदीश सोनी ,को राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिल चुके हैं । कागज़ जैसी पतली चद्दर पर मीना करने में बीकानेर के मीना कार सिद्धहस्त है । तांबे पर सफेद ,काला और गुलाबी रंग का काम ही होता है।पुराने मीना की कारीगरी अधिक मूल्यवान समझी जाती है। कागजी टेरीकोटा अलवर की

राजस्थान के प्रमुख किले एवं स्मारक

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  राजस्थान के प्रमुख किले व स्मारक ( Fort and Monuments ) एक शाही राज्य होने के नाते, राजस्थान में कई शानदार किले और ऐतिहासिक स्मारक हैं। राजस्थान ने कई राजाओ और महाराजा के इतिहास को देखा है ,जिन्होंने अपने शासनकाल के सबूत इन अदभुद स्मारकों और किलों के रूप मे छोड़ दिए है । राजस्थान में ये ऐतिहासिक किले उनके शानदार वास्तुशिल्प सौंदर्य के लिए जाने जाते हैं और दुनिया भर से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। गुलाबी शहर के नाम से मशहूर , जयपुर राजस्थान की राजधानी है और यहां बहुत से ऐतिहासिक किले और स्मारक हैं। जयपुर में कुछ प्रमुख ऐतिहासिक स्थानों में आमेर किला, जयगढ़ किला,  नाहरगढ़ किला , सिटी पैलेस ,  हवा महल  या पैलेस ऑफ विंड , जल महल, रामबाग महल, आदि शामिल हैं। Amer Fort जोधपुर, जो sun city के नाम से भी जाना जाता है, मे मेहरणगढ़ का किला, जसवंत थड़ा मेमोरियल और बलसमंद झील और उम्मेद भवन या छीतर पैलेस है।  झीलों का शहर  उदयपुर  शानदार महलों की भूमि है। इस शहर में प्रमुख महलों में लेक पैलेस, जगमंदिर पैलेस, फतेह प्रकाश पैलेस, शिव प्रकाश पैलेस, इत्यादि शामिल हैं। कुंभलगढ़ किला उदयपुर से थोड़ी ही दूरी

राजस्थान की चित्रकला

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  Rajasthan Painting ( राजस्थान की चित्रकला ) भारतीय चित्रकला के पितामह रवि वर्मा (केरल) हैं सर्वप्रथम आनंद कुमार स्वामी ने अपने ग्रंथ `राजपूत पेंटिंग’ में राजस्थान की चित्रकला का स्वरूप को 1916 ई.में उजागर किया राजस्थान में आधुनिक चित्रकला को प्रारंभ करने का श्रेय कुंदनलाल मिस्त्री को दिया जाता है राजस्थान की चित्रकला में अजंता व मुगल शैली का सम्मिश्रण पाया जाता है राजस्थानी चित्रकला को राजपुत्र चित्र शैली भी कहा जाता है राजस्थानी चित्रकला में चटकीले भड़कीले रंगों का प्रयोग किया गया हैं! विशेषत: पीले और लाल रंग का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है राजस्थानी चित्रकला शैली का प्रारंभ 15वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य माना जाता है राजस्थानी चित्रकला की चार प्रमुख शैलियां (Four major styles of Rajasthani painting) मेवाड़ शैली- उदयपुर, नाथद्वारा, चावण्ड, देवगढ़ मारवाड़ी शैली- जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, किशनगढ, नागौर, अजमेर, ढूंढाड़ शैली- आमेर, जयपुर, शेखावाटी, अलवर, करौली। हाडोती शैली- बूंदी, कोटा, झालावाड़, दुगारी! 1. मेवाड़ शैली (  Mewar Style ) चित्रकला की सर्वाधिक प्राचीन शैली। मेवाड़ शैली को विकस

राजस्थान की क्षेत्रीय बोलिया

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  राजस्थान की क्षेत्रीय बोलियां ( Rajasthan Regional bids ) डॉ एल.पी.टेसीटोरी का वर्गीकरण इटली के निवासी टेसीटोरी की कार्यस्थली बीकानेर रही । उनकी मृत्यु (1919 ई. ) भी बीकानेर में ही हुई । बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने उन्हें ‘राजस्थान के चारण साहित्य’ के सर्वेक्षण एंव संग्रह का कार्य सौंपा था । डॉ. टेसीटोरी ने चरणों और ऐतिहासिक हस्तलिखित ग्रन्थों की एक विवरणात्मक सूची तैयार की । उन्होंने अपना कार्य पूरा कर राजस्थानी साहित्य पर दो ग्रंथ लिखे । राजस्थानी चारण साहित्य एंव ऐतिहासिक सर्वे । पश्चमी राजस्थान का व्याकरण । टेसीटोरी की प्रसिद्ध पुस्तक “ए डिस्क्रिप्टिव केटलॉग ऑफ द बार्डिक एन्ड हिस्टोरिकल क्रोनिकल्स ‘ है । डॉ एल.पी.टेसीटोरी के अनुसार राजस्थान ओर मालवा की बोलियों को दो भागों में बांटा जा सकता है— पश्चिमी राजस्थान की प्रतिनिधि बोलियां-: मारवाड़ी मेवाड़ी बागड़ी शेखावाटी पूर्वी राजस्थान की प्रतिनिधि बोलियां-: ढूंढाड़ी हाडोती मेवाती अहीरवाटी 1. पश्चिमी राजस्थान की मुख्य बोलियां मारवाड़ी:- कुवलयमाला में जिस भाषा को ‘मरुभाषा’ कहा गया है,वह मारवाड़ी है । इसका प्राचीन नाम मरुभाषा है जो पश्चमी